नमस्कार दोस्तों ; आपमें से बहुत एक्टुएटर के नाम सुने भी होंगे और देखे भी होंगे क्योंकि एक्टुएटर आजकल ब्रैकिंग सिस्टम से लेकर इलेक्ट्रिकल मोटर, सोलेनोइड इत्यादि में भी इसका उपयोग होता है।
एक्टुएटर को हम हिंदी में गति देने वाला या प्रेरक भी कहते है।
आजकल तो छोटा इंडस्ट्रीज से लेकर बड़ा इंडस्ट्रीज में कोई न कोई ऐसा उपकरण जरूर होता है जो एक्टुएटर से नियंत्रित होता है।
तो इसीलिए समझना जरुरी हो जाता है की एक्टुएटर क्या है ? ये कितने प्रकार के होते है ?
तो आईये समझते है –
Actuator क्या है ?
एक्चुएटर किसी भी मशीन एक घटक होता जो किसी तंत्र या सिस्टम को एक जगह से दूसरे जगह स्थान्तरित करने और उसे नियंत्रित करने में मदद करता है।
जैसे की कोई स्टीम का लाइन है और उसमे प्रेशर रेडूसिंग वाल्व लगा है तो प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए वाल्व में एक्टुएटर लगा होता है जो जरुरत के हिसाब से वाल्व को ओपन और क्लोज करता है जिससे की हमें अपेक्षित प्रेशर मिल सके।
वैसे तो एक्टुएटर बहुत प्रकार की होती है लेकिन सभी एक्टुएटर को सही से काम करने के लिए उसे किसी ऊर्जा स्रोत और एक कमांड सिग्नल की जरुरत होती है जिससे की उसे नियंत्रित किया जा सके।
आमतौर पर ऊर्जा के स्रोत इलेक्ट्रिक वोल्टेज या करंट होता है और कण्ट्रोल सिग्नल ऊर्जा स्रोत के मुकाबले कम ऊर्जा वाला होता है और यह विद्युत वोल्टेज या करंट, वायवीय, या हाइड्रोलिक द्रव दबाव या फिर कोई हम और आप इसे मैन्युअली भी सिग्नल दे सकते है।
जब एक्टुएटर को सिग्नल मिलता है तो ये स्वतः रेस्पोन्ड करना स्टार्ट कर देता है और ये ऊर्जा के स्रोत को यांत्रिक गति में प्रबर्तित करने लगता है। एक्टुएटर खुद में किसी भी कमांड सिग्नल को पढ़कर अपेक्षाकृत परिणाम दे सकता है या फिर ये सॉफ्टवेयर बेस्ड भी हो सकता है।
एक्टुएटर सिस्टम 1938 में सबसे पहले Xhiter Anckeleman द्वारा बनाया गया था जिन्होंने सबसे पहले कार के इंजन और ब्रेक में इसका इस्तेमाल किये थे जिससे की कार में कम से कम wear & tear हो।
ये कितने प्रकार के होते है ?
आमतौर पर एक्टुएटर मुख्यतः 3 प्रकार के होते है लेकिन 1960 के दशक में एक्टुएटर की टेक्नोलॉजी बहुत विकसित हुआ जिसमे इलेक्ट्रिकल एक्टुएटर को आधुनिक इंडस्ट्रीज के जरुरत के हिसाब से और विकसित किया गया।
तो आईये विस्तार में समझते है –
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वायवीय एक्टुएटर ( Pneumatic Actuator ) :
न्यूमेटिक एक्ट्यूएटर अपेक्षाकृत इलेक्ट्रिकल एक्टुएटर और मैकेनिकल एक्टुएटर से कम प्रेशर में जयादा ताकतों का उत्पादन करने में सक्षम होता है।
इसीलिए आमतौर पर मुख्य इंजन नियंत्रणों के लिए वायवीय एक्टुएटर का उपयोग किया जाता है क्योंकि यह अपने कमांड सिग्नल के मिलते ही जल्दी ही अपना प्रतिक्रिया देता है और रोकने में भी त्वरित प्रतिक्रिया दे सकता है।
क्योंकि वायवीय एक्टुएटर में बिजली स्रोत को संचालन के लिए रिजर्व में हमेशा संग्रहीत करने की आवश्यकता नहीं होता है।
इसके अलावा, आमतौर पर वायवीय एक्चुएटर अपेक्षाकृत इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल एक्टुएटर से सस्ते होते हैं, और जयादातर अन्य एक्चुएटर्स की मुकाबले ये अधिक प्रभाभशाली और शक्तिशाली होते है।
हाइड्रोलिक एक्टुएटर ( Hydraulic Actuator ) :
ऐसे एक्टुएटर में यांत्रिक ऑपरेशन को आसान बनाने के लिए हाइड्रोलिक पावर का उपयोग किया जाता है।
इसमें आमतौर पर जयादा बल की जरुरत होती है क्योंकि तरल पदार्थ को संपीड़ित करना थोड़ा मुश्किल होता है।
आमतौर पर हाइड्रोलिक एक्टुएटर थोड़े महंगे और इसका ऑपरेशन करना थोड़ा मुश्किल होता है।
इलेक्ट्रिकल एक्टुएटर ( Electrical Actuator )
1.एलेक्ट्रोमैकेनिकल एक्टुएटर ( Electromechanical Actuator ):
ये अपेक्षित रैखिक गति पैदा करने के लिए किसी बेल्ट या स्क्रू मैकेनिज्म के माध्यम से इलेक्ट्रिक मोटर के घूर्णी बल को रैखिक गति में बदलता है।
ये लगभग 100 KN तक बल उत्पन्न कर सकता है और इसका लाइफ न्यूमेटिक एक्टुएटर के अपेक्षा जयादा होता है और इसमें बहुत कम Wear & Tear होता जिससे की इसका मेंटेनेंस कॉस्ट भी बहुत कम होता है।
2. एलेक्ट्रोहैड्रॉलिक एक्टुएटर (Electrohydraulic Actuator ) :
ये जयादातर हैवी उपकरण में उपयोग किया जाता है। जिसमे इलेक्ट्रिक मोटर हमेशा मुख्य गति देने वाला होता है और हाइड्रोलिक संचायक को संचालित करने के लिए टॉर्क भी प्रदान करता है।
इसमें आमतौर पर विद्युत ऊर्जा का उपयोग मल्टी-टर्न वाल्व जैसे उपकरणों को सक्रिय करने के लिए किया जाता है।
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Conclusion : आशा करता हूँ दोस्तों आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा होगा ।
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