Brazing क्या है ? ब्रेज़िंग की प्रक्रिया

नमस्कार दोस्तों ; जब हम कोई मेटल से नई वस्तु बनाते है तो उसे जोड़ना पड़ता है आमतौर पर आप देखते होंगे जोड़ने के लिए वेल्डिंग का उपयोग किया जाता है।
 
यदि कोई इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स जैसे की कॉपर से सर्किट बोर्ड या फिर  jewellery आइटम्स का जुड़ाव हो तो अक्सर हम सोल्डरिंग करते देखते है।
 
लेकिन ब्रेज़िंग भी एक जोइनिंग प्रोसेस है जो आमतौर पर दो मेटल या नॉन मेटल को आपस में जोड़ने के लिए उपयोग किया जाता है।
 
इसीलिए आज हम इस आर्टिकल में ब्रेज़िंग क्या है , ब्रेज़िंग प्रक्रिया और ब्रेज़िंग के विधि के बारे में जानेंगे। 
 
तो आईये विस्तार से समझते है –

ब्रेज़िंग क्या है ?

ब्रेज़िंग एक मेटल जोइनिंग प्रोसेस है जिसमे नॉन फेरस फिलर मटेरियल के साथ दो या दो से जयादा मेटल को एक साथ जोड़ा जाता है। 

जिसमे फिलर मटेरियल का मेल्टिंग पॉइंट 427 डिग्री सेल्सियस से जयादा होता है , लेकिन पैरेंट मेटल के मेल्टिंग पॉइंट से कम होता है। फिलर मेटल को स्पेलटर भी कहा जाता है। 

वैसे तो वेल्डिंग सबसे जयादा उपयोग किया जाने वाला जोइनिंग प्रोसेस है , लेकिन ब्रेज़िंग वेल्डिंग प्रोसेस से भिन्न होता है क्योंकि ब्रेज़िंग में वर्कपीस को नहीं पिघलाया जाता है। 

ब्रेज़िंग का एडवांटेज ये है की विभिन्न मेटल को काफी मजबूती के साथ आपस में जोड़ने की क्षमता होता है।

 

ब्रेज़िंग की प्रक्रिया

सबसे पहले ब्रेज़िंग करने वाली सतह को साफ किया जाता है , साफ करने के लिए आमतौर पर ब्रेज़िंग फ्लक्स  का उपयोग किया जाता है। 

फ्लक्स सामान्यतः बोरेक्स होता है, जो आमतौर पर लिक्विड या पेस्ट के रूप में बनाया जाता है, जिसे ब्रेज़िंग से पहले जॉइंट होने वाली सतह पर लगाया जाता है।  

ये फ्लक्स ब्रेज़िंग के दौरान एक्टिव हो जाता है और जोइनिंग सतह को गर्म करने के दौरान बनने वाली ऑक्साइड को अवशोषित करता है जिससे की ब्रेजिंग मिश्र धातु के प्रवाह आसानी से होता है। 

उसके बाद मेटल को क्लैंप करके अच्छे से फिट किया जाता है और दोनों मेटल का क्लीयरेंस लगभग  0.03 से 0.08 mm होता है। 

यदि इससे कम क्लीयरेंस हो तो पिघला हुआ फिलर मटेरियल के लिए जॉइंट के माध्यम से बहने के लिए कोई जगह नहीं हो सकती है। 

और यदि इससे जयादा क्लीयरेंस हुआ तो फिलर मटेरियल जॉइंट को भरने में काम असरदार हो सकती है। 

इसीलिए अच्छा ब्रेज़िंग के लिए दो मेटल के बिच क्लीयरेंस सही होनी चाहिए। 

उसके बाद ब्रेज़िंग टोर्च से गर्म किया जाता है जैसे जैसे गर्म होता है ये फिलर मटेरियल पिघलने लगता है और फैलने लगता है। फिर ठंडा किया जाता है और लगाया हुआ फ्लक्स को निकल दिया जाता है। 

 

ब्रेज़िंग की सामान्य तकनीक

1.टोर्च ब्रेज़िंग

टोर्च ब्रेज़िंग सबसे आम ब्रेज़िंग प्रोसेस है जो आमतौर पर low वॉल्यूम उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है। 

टोर्च ब्रेज़िंग मुख्यतः तीन प्रकार के होते है , जो की इस प्रकार से है –

  • मैन्युअल टोर्च ब्रेज़िंग 
  • मशीन टोर्च ब्रेज़िंग और 
  • स्वतः टोर्च ब्रेज़िंग 

मैन्युअल टोर्च ब्रेज़िंग

मैन्युअल टोर्च ब्रेज़िंग एक आम टोर्च ब्रेज़िंग है , जिसमे टोर्च हाथ में या फिक्स होता है और जॉइंट पर गैस फ्लेम का उपयोग करके गर्म किया जाता है। 

गैस फ्लेम में सामान्यतः हाइड्रोजन , ऑक्सीजन और ज्वलनशील गैस का उपयोग किया जाता है। 

जयादातर मैन्युअल टोर्च  ब्रेज़िंग का उपयोग वहां किया जाता है जहाँ ब्रेज़िंग करना मुश्किल होता है और ये विधि कम उत्पादन के लिए उपयोगी होता है। 

इसमें कुशल ऑपरेटर की जरुरत होती है और आमतौर पर इसमें ऑक्सीकरण को रोकने के लिए फ्लक्स का उपयोग किया जाता है। 

मशीन टोर्च ब्रेज़िंग

मशीन टोर्च ब्रेज़िंग विधि स्वचालित और मैन्युअल संचालन दोनों का मिश्रण होता है , जिसमे ऑपरेटर का कम होता है सतह को साफ करना , मटेरियल को सही से रखना , फ्लक्स लगाना और मशीन ब्रेज़िंग करता है। 

मशीन टोर्च ब्रेज़िंग विधि का लाभ ये की इसमें लेबर कॉस्ट कम लगता है और उत्पादन भी जल्दी और जयादा होता है। 

इसका उपयोग सामान्यतः कम या औसत उत्पादन के लिए किया जाता है। 

आटोमेटिक टोर्च ब्रेज़िंग

ये ब्रेज़िंग विधि मशीन टोर्च ब्रेज़िंग विधि के जैसा ही होता है ,इसमें मटेरियल लोड और अनलोड करने के अलावा सब कुछ मशीन द्वारा ही होता है। 

स्वतः टोर्च ब्रेज़िंग विधि का लाभ ये है की इसमें लेबर कॉस्ट बहुत बचता है , और उत्पादन क्षमता भी जयादा होता है। 

2.फर्नेस ब्रेज़िंग

फर्नेस ब्रेज़िंग विधि सेमि आटोमेटिक प्रोसेस होता है , जो आमतौर पर बड़े इंडस्ट्रीज में उपयोग किया जाता है। 

इसमें अनुप्रयोग के हिसाब से फर्नेस को गर्म करने के लिए तेल , गैस या इलेक्ट्रिसिटी का उपयोग किया जाता है। 

इसमें आमतौर पर इसमें ऑक्सीकरण को रोकने के लिए फ्लक्स का बजाय निष्क्रिय, कम करने वाले या निर्वात वायुमंडल उपयोग किया जाता है। 

फर्नेस ब्रेज़िंग की खास बात ये है की अकुशल ऑपरेटर के साथ भी बड़े पैमाने पर उत्पादन की क्षमता होती है। जिससे की उत्पादन में संचालन लागत सेविंग भी होती है। 

3.सिल्वर ब्रेज़िंग

सिल्वर ब्रेज़िंग में आमतौर पर फिलर सिल्वर मिश्र धातु का होता है , जिसमे जयादा प्रतिशत सिल्वर और कुछ मेटल के प्रतिशत होते है जैसे की कॉपर , जिंक , कैडमियम इत्यादि। सिल्वर ब्रेज़िंग को हार्ड सोल्डरिंग भी कहा जाता है। 

इसका उपयोग जयादातर टूल इंडस्ट्रीज में हार्ड मेटल जैसे की कार्बाइड , सरमिक्स  इत्यादि। 

4.वैक्यूम ब्रेज़िंग

वैक्यूम ब्रेज़िंग आमतौर पर फर्नेस में होता है , और हीट ट्रांसफर के लिए विकिरण का उपयोग किया जाता है। 

वैक्यूम ब्रेज़िंग विधि से आसानी से एक साथ ही कई जॉइंट किया जा सकता है। 

वैक्यूम ब्रेज़िंग विधि थोड़ा महंगा होता है लेकिन इसमें साफ सुथरा , मजबूत और बिना फ्लक्स के जॉइंट होता है। 

5.डीप ब्रेज़िंग

डीप ब्रेज़िंग में सबसे पहले पार्ट्स के ऊपर घोल वाली फ्लक्स लगाया जाता है उसके बाद पिघले हुए नमक ( सोडियम क्लोराइड या पोटासियम क्लोराइड के यौगिक ) में डुबाया जाता जाता है।  

जो हीट ट्रांसफर और फ्लक्स दोनों का काम करता है और फिलर जॉइंट के अंदर पहुंच जाता है और ठंडा होने के बाद मजबूत जॉइंट बनाती है। 

 

ब्रेज़िंग में आमतौर पर उपयोग किया जाने वाला फिलर मैटेरियल्स

ब्रेज़िंग प्रोसेस में फिलर मैटेरियल्स का महत्व बहुत जयादा होता है। लेकिन ब्रेज़िंग के लिए बिभिन्न प्रकार के मिश्र धातु से बना फिलर मटेरियल का उपयोग किया जाता है।

फिलर मटेरियल का चुनाव आमतौर पर ब्रेज़िंग के विधि मेटल और तापमान पर निर्भर करता है। 

फिलर मटेरियल अनुप्रयोग के हिसाब पाउडर , क्रीम , पेस्ट , रिबन , रॉड के रूप में मार्किट में मिल जाता है। 

लेकिन जो फिलर मटेरियल सामान्यतः उपयोग किया जाता है , वो इस प्रकार से है –

  • कॉपर 
  • कॉपर सिल्वर 
  • गोल्ड सिल्वर 
  • निकल और 
  • एल्युमीनियम इत्यादि। 

Conclusion: दोस्तों आज हमने ब्रेज़िंग क्या है,  ब्रेज़िंग प्रक्रिया और ब्रेज़िंग विधि के बारे में समझा।

यदि ब्रेज़िंग से सम्बंधित कोई और प्रश्न या सुझाव हो तो हमारे साथ जरूर शेयर करे।

और हाँ दोस्तों आज का आर्टिकल कैसा लगा कमेंट कर के जरूर बताये और अपने दोस्तों के साथ अवश्य शेयर करे।

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