नमस्कार दोस्तों , आपमें से बहुत लोग जानते होंगे या पढ़े होंगे ट्रांजिस्टर के बारे में , ये देखने में बहुत छोटा और साधारण सा दिखता है।
लेकिन ये एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो आजकल आपको हमारे फ़ोन , लैपटॉप , TV , स्पीकर इत्यादि जितने भी इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण है सबमे आपको देखने को मिल जायेगा।
इसीलिए आज हम इस आर्टिकल में विस्तार से समझेंगे ट्रांजिस्टर के बारे में।
तो आईये समझते है –
ट्रांजिस्टर क्या है ?
ट्रांजिस्टर एक अर्धचालक युक्ति है जो कोई भी इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल का विस्तार करती है या उसे विद्युतीय शक्ति में बदलती है।
ये आमतौर पर पुरे सिलिकॉन या जर्मेनियम से बनी होती है।
जिसमे किसी भी दूसरी सर्किट से जोड़ने के लिए कम से कम तीन टर्मिनल ( Base , collector , Emitter ) होते है।
ट्रांजिस्टर का इतिहास :
एक मशहूर अमेरिकी भौतिक विज्ञानी और आविष्कारक विलियम ब्रैडफोर्ड शॉकलेय जिनका जन्म सन 1910 में हुआ था।
विलियम ब्रैडफोर्ड शॉकलेय एक अमेरिकन बेल्ल लैब में मैनेजर के तौर पर कम करते थे।
उन्ही के अंदर उनके दो छात्र जॉन बर्दीन और वॉटर ब्रट्टैन ने भारत के आज़ादी से एक साल पहले सन 1947 में पॉइंट कोन्टक्टेड ट्रांजिस्टर का आविष्कार किया था।
1956 में विलियम ब्रैडफोर्ड शॉकलेय और उनके दो छात्र जॉन बर्दीन और वॉटर ब्रट्टैन को सेमीकंडक्टर पर शोध और ट्रांजिस्टर प्रभाव की खोज के लिए नोबेल प्राइज मिला था।
वैसे सबसे जयादा उपयोग किया जाने वाला ट्रांजिस्टर ( मॉस्फेट ) का आविष्कार सन 1951 में मोहम्मद अटाला और डॉन कहंग ने किया था।
ट्रांजिस्टर के प्रकार :
1.बाइपोलर जंक्शन ट्रांजिस्टर (Bipolar Junction Transistor):
इसे बाइपोलर ट्रांजिस्टर इसीलिए कहा जाता है क्योंकि ये दो वाहक का उपयोग करके काम करता है।
इसमें बहुत पतले परत वाली दो P- टाइप की सेमीकंडक्टर N- टाइप के बिच में होती है जिसे हम N-P-N ट्रांजिस्टर कहते है।
या फिर दो P -टाइप की सैंकण्डक्टर N-टाइप वाली सेमीकंडक्टर के बिच में होती है जिसे हम P-N-P ट्रांजिस्टर कहते है।
इसमें तीन टर्मिनल होते है एक एक एमिटर , एक बेस और एक कलेक्टर ।
इसका इस्तेमाल जयादातर एम्पलीफायर में होता है क्योंकि एमिटर और कलेक्टर पर करंट अपेक्षाकृत छोटे बेस करंट द्वारा नियंत्रित होती हैं।
बाइपोलर जंक्शन ट्रांजिस्टर के प्रकार :
बाइपोलर जंक्शन ट्रांजिस्टर मुख्यतः दो प्रकार के होते है –
a). N-P-N ट्रांजिस्टर
b). P-N-P ट्रांजिस्टर
a). N-P-N ट्रांजिस्टर :
इसमें दो N -टाइप की सेमीकंडक्टर P-टाइप वाली सेमीकंडक्टर के बिच में होती है। इसमें तीन टर्मिनल होते है एक एक एमिटर , एक बेस और एक कलेक्टर।
जिसमे P- टाइप वाली लेयर बेस का काम करती है और left वाली N- टाइप की लेयर एम्मिटर का काम करती है और right वाली N-टाइप की लेयर collector का काम करती है।
b). P-N-P ट्रांजिस्टर :
इसमें दो P -टाइप की सेमीकंडक्टर N-टाइप वाली सेमीकंडक्टर के बिच में होती है। इसमें तीन टर्मिनल होते है एक एमिटर , एक बेस और एक कलेक्टर।
N-टाइप वाली लेयर बेस का काम करती है और left वाली P-टाइप की लेयर एमिटर का काम करती है और right वाली P-टाइप की लेयर collector का काम करती है।
2. फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर (Field Effect Transistor):
फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर एक ध्रुवीय ट्रांजिस्टर है जिसमे करंट का नियंत्रण एक इलेक्ट्रिक फील्ड द्वारा होता है। इसमें तीन टर्मिनल होते है सोर्स , गेट ,और ड्रेन।
सोर्स (Source) : सोर्स के माध्यम से करंट चैनल में आता है।
गेट (Gate) : गेट के द्वारा करंट को नियंत्रित किया जाता है और
ड्रेन (Drain): ड्रेन के द्वारा करंट बहार निकलता है।
इसमें आमतौर करंट प्रतिरोध क्षमता 100 MΩ या उससे अधिक होता है।
फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर ( FET ) मुख्यतः दो प्रकार का होता है:
a).मेटल ऑक्साइड सेमीकंडक्टर फील्ड एफेक्ट ट्रांजिस्टर और
b).जंक्शन फील्ड एफेक्ट ट्रांजिस्टर
a).मेटल ऑक्साइड सेमीकंडक्टर फील्ड एफेक्ट ट्रांजिस्टर ( MOSFET):
ये डिजिटल सर्किट और एनालॉग सर्किट में सबसे जयादा उपयोग किया जाने वाला ट्रांजिस्टर है जिसमे एक इंसुलेटेड गेट होता है, जो कंडक्टिविटी को निर्धारित करता है।
इसका उपयोग स्विच , चोपर , स्टेबलाइजर इत्यादि में किया जाता है।
b).जंक्शन फील्ड एफेक्ट ट्रांजिस्टर (JFET):
ये फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर का एक साधारण रूप है जिसमे भी तीन टर्मिनल होता है।
जिसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक स्विच या प्रतिरोधक या एम्पलीफायरों के निर्माण के लिए किया जाता है
PNP और NPN में ट्रांजिस्टर में अंतर
वैसे तो दोनों ट्रांजिस्टर बाइपोलर ट्रांजिस्टर ही है लेकिन दोनों में बहुत भिन्नता है जैसे की :-
PNP Transistor |
NPN Transistor |
1.इसका फुल फॉर्म पॉजिटिव नेगेटिव पॉजिटिव होता है। |
1.इसका फुल फॉर्म नेगेटिव पॉजिटिव नेगेटिव होता है। |
2.इसमें करंट का प्रवाह कलेक्टर से एमिटर तक प्रवाहित होता है। |
2.इसमें करंट का प्रवह एमिटर से कलेक्टर तक प्रवाहित होता है। |
3.इसमें दो P-टाइप की सेमीकंडक्टर होता है। |
3.इसमें दो N-टाइप का सेमीकंडक्टर होता है। |
4.इसमें दो P- टाइप के सेमीकंडक्टर के बीच में एक N- टाइप का semiconductor होता है। |
4.इसमें दो N- टाइप के सेमीकंडक्टर के बीच में एक P- टाइप का semiconductor होता है। |
5.इसका स्विचिंग टाइम बहुत धीमा होता है। |
5.इसका स्विचिंग टाइम बहुत तेज होता है। |
6.इसमें करंट का वाहक छिद्र होता है। |
6.इसमें करंट का वाहक इलेक्ट्रान होता है। |
वैक्यूम ट्यूबों पर ट्रांजिस्टर के लाभ :
1.ट्रांजिस्टर , वैक्यूम tubes के मुकाबले बहुत कम पावर लेता है। जिससे की एनर्जी का बहुत जयादा बचत होता है।
2.ट्रांजिस्टर, वैक्यूम tubes के मुकाबले बहुत छोटा होता है।
3.वैक्यूम tubes के अपेक्षा ट्रांजिस्टर कम वोल्टेज में भी आसानी से काम करता है ।
4.ट्रांजिस्टर में खर्च कम है।
5.वैक्यूम tubes के मुकाबले ट्रांजिस्टर जयादा सुरक्षित है।
Conclusion: दोस्तों आज हमने ट्रांजिस्टर क्या है , ट्रांजिस्टर कैसे काम करता है, ट्रांजिस्टर कितने प्रकार के होते है समझा।
यदि फिर भी कंडेंसर से सम्बंधित कोई प्रश्न या सुझाव हो तो हमारे साथ जरूर शेयर करे।
और हाँ दोस्तों आज का आर्टिकल कैसा लगा कमेंट कर के जरूर बताये और अपने दोस्तों के साथ अवश्य शेयर करे।